life can be boring without friends

Posted: Saturday, October 2, 2010 by प्रशांत भगत in
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People think that life can be boring without friends ,
but what of the farmers who starve due to no rain;
people think that life can be boring without entertainment,
but what of the poor who live their life on rent;
people think that life can be boring without fun,
but what of the politicians who make false promises and run;
people think that life can be boring without their parent's,
but what of the children whose parent's left them and make their life as dumps;
people thought of their difficulties and declared their life as hell,
but we should overcome these difficulties as they realize our hidden potentialities.......;
every person is lucky on this earth whether he is a boy or a girl,
so never argue in concern of your life as God has given the beautiful life,
so use every flower from the garden of this earth and give your life the touch of heaven..........
By:
Shefali chaturvedi


---- Shefali Chaturvedi is 14 years old girl and student of class 10th at City Montessary School (mahanagar 2nd building) Lucknow. What she think she tried to write and now its in front of you to share her views. please make comments and suggest her also.

क्या मतलब है आज़ादी का?

Posted: Friday, August 13, 2010 by प्रशांत भगत in
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क्या मतलब है आज़ादी का?

बीबीसी के पृष्ठ पर जाने के लिए ऊपर क्लिक करे /
बीबीसी ने कई लोगो से यह सवाल पूछा /

15 अगस्त को भारत की आज़ादी की 64वीं सालगिरह है. लेकिन क्या भारत के नागरिक वाकई अपने आपको आज़ाद महसूस करते हैं? स्वतंत्रता के असल मायने हैं क्या?

बीबीसी ने ये सवाल कई जानी-मानी हस्तियों के अलावा आम लोगों से भी पूछा.

सूचना के अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि सही मायनों में आज़ादी के लिए भारत से अफ़सरशाही ख़त्म होनी चाहिए.

वो कहते हैं "सूचना के अधिकार से हमें सिर्फ़ सवाल पूछने का अधिकार मिला है। सरकारी फ़ैसलों से हमें आज़ादी नहीं मिली है. हमें ऐसा लोकतंत्र चाहिए जिसमें रोज़ाना जनता का दखल हो. ये पांच साल वाला जनतंत्र हमें नहीं चाहिए."

अरविन्द केजरीवाल साहब अपने संविधान पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है / उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों से कोई शिकायत नहीं है, शर्तियां इन्होने भी अपना मत किसी न किसी को दिया ही होगा चुनाव के समय/ लेकिन जब आज़ादी का मतलब इनसे पूछा गया तो इन्होने कहा कि, हम सब को सरकार के काम में दिन प्रतिदिन का जब तक दखल न मिले तो आज़ादी अधूरी है, पांच साल वाला जनतंत्र इन्हें पसंद नहीं आ रहा है इन्हें प्रतिदिन वाला जनतंत्र चाहिए / जिसमे भारत के सभी नागरिक रोज सुबह संसद भवन में पहुचे और आज के दिन की चीजे तय करे और अगले दिन वाली फिर कल सुबह / वाह भाई अरविन्द केजरीवाल क्या सोच है आपकी ? और कितना कमजोर है हमारा संविधान / लानत है इस सरकार पर जो कि आपके ऊपर राजद्रोह, पोटा या मकोका नहीं लगा रही है / आप से बेहतर तो माओवादी समझ में आ रहे है कि उन्हें जनतंत्र नहीं अपितु साम्यवाद चाहिए, और आप को अराजकतावाद चाहिए / जहा संविधान भी न हो, रोज खोदेंगे कुआ और रोज पियेंगे पानी / पर आपको क्या कहे, भारतीय राजस्व सेवा कीनौकरी इसलिए छोड़ दी क्यूंकि आपको रमन मैग्सेसे पुरस्कार लेना था , भारतीय प्रशाशनिक सेवा में रहते हुएआपने परिवर्तन नामक संगठन की नीव रक्खी और परिवर्तन के लिए सन २००० से अब तक कार्य कर रहे है / फिर सन २००० से लेकरके २००६ के बीच में आपने भारतीय राजस्व सेवा से इस्तीफा क्यों नहीं दियाइंतज़ार कर रहे थे रमन मैग्सेसे पुरष्कार का /आप कौन सी परम्परा के अफसर थे ? मौकापरस्त ? सन २००४ में आप राजस्व विभाग की नौकरी करते हुए अशोका फेलोशिप कैसे लिए थे क्या आप हम देशवासियों को बताने का कष्ट करेंगे ? पढाई की अभियांत्रिकी की नौकरी की राजस्व विभाग की बाते करते हो अराजकतावाद की / देश को मेकैनेकल इंजिनियर की प्रयोगशाला बनाना चाहते हो ? समाज बदलने के बारे में ही सोचते थे तो क्यों नहीं पढ़ा समाजशास्त्र, क्यों गए राजस्व विभाग में अफसर बनने ? अपने अन्दर तो झाँक लिया होता एक बार फिर यह कहते की हमारा जनतंत्र ठीक नहीं है, इसे रोज़ तंत्र में बदल देना चाहिए / आप जैसे लोगो की वजह से इस देश की हालत यह है, आम आदमी के पैसे से इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नालाजी में पढ़ते हो, और तकनीकी छोड़ करके राजस्व विभाग में जाते हो फिर उसे भी छोड़ते हो, एक पुरस्कार के चक्कर में आप से बड़ा धन लोभी , नाम लोभी कौन होगा / हम नफ़रत करते है आपसे और आप जैसी परम्परा वाले अन्य लोगो से भी /

इमरोज:एक दुनिया प्यार की

Posted: Thursday, April 8, 2010 by Bhawna 'SATHI' in लेबल: ,
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"तुझ में शामिल होकर ही,
लम्हा-लम्हा जीता हूँ जिन्दगी "
इमरोज जी से मिलना हुआ,कुछ दिनों पहलेपर आज भी सब वैसा ही टटका और ताजा है पहले से कोई परिचय नही था,लेकिन मिलने के लिए समय इस तरह से दे दिया कि लगा कोई पुरानी परिचिता हूँ जो जब चाहे तब आ जायेमन को भा गयी थी इतनी आत्मीयता और सहजतागर्मी थी,घर खोजते-खोजते पहुची,नीचे ही मुलाकात हो गयी दरवाजे के अंदर ही जाते ही मुझे लगा कि ये अलग दुनिया है इस तथाकथित दुनिया की असुन्दरता से अलग सब कुछ सुंदर-सुंदर सा उस घर में जाकर आँखे फाडकर -फाडकर सब देखते हुए कुछ ऐसा महसूस हो रहा था जो शायद शब्दों की सीमा से बाहर थापूरा घर प्रेम में डूबा-डूबा, भींगा -भींगा सा लगा सब कुछ प्रेममय
अपने ही कमरे में बिठाया उन्होंने और अमृता जी को जीने लगे हम दोनोंढेर सारी कविताये और बाते चाय के साथ पीते हुएदोपहर का खाना भी अपने साथ बैठा कर प्यार से खिलाया फिर बातो में डूबे तो शाम होने लगीपूछा,चाय बना लेती हो और किचन में ले गये,खुद दो चार बर्तनों को साफ करने लगे और मैं उस किचन में अमृता को महसूस करके चाय बनाती रहीदेखती रही उस 'आदमी ' के अंदर की औरत को जिसने अमृता को सखी बना कर जीया और औरत- मर्द के रिश्ते को एक नया मुकाम दे दिया इतनी गहराई और इतनी पवित्रता का सम्बन्ध सोच के परे भी है लोगो के
मंदिर बहुत कम जाती हूँ पर उस दिन लगा "प्रेम मंदिर "में बैठी हूँ सचमुच इमरोज जी अमृता जी को अपने अंदर और बाहर जिन्दा किये हुए है चलते वक्त अपनी नज्मो की किताब पर प्यार की सीख भी दे डाली "Everything you Love is your's"पहली बार प्यार को अपनी पूरी सजीवता में देखा और महसूसा था और ये चंद घंटो की मुलाकात नक्श हो गयी जिन्दगी पर

पितृसत्ता :एक अवलोकन

Posted: Monday, March 29, 2010 by mukti in लेबल:
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पितृसत्ता का तात्पर्य आमतौर पर पुरुष-प्रधान समाज से लिया जाता है,जिसमें सम्पत्ति का उत्तराधिकार पिता से पुत्र को प्राप्त होता है. परन्तु नारीवादी दृष्टि से पितृसत्ता की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है. यह मात्र पुरुषों के वर्चस्व से सम्बन्धित नहीं है, अपितु इसका सम्बन्ध उस सामाजिक ढाँचे से है, जिसके अन्तर्गत सत्ता सदैव शक्तिशाली के हाथ में होती है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. इस प्रकार पितृसत्तात्मक विचारधारा स्त्री और पुरुष दोनों को प्रभावित करती है.
पितृसत्ता के इस अर्थ को समझ लेने पर हम उस आक्षेप का स्पष्टीकरण दे सकते हैं,जिसके अनुसार कहा जाता है "नारी ही नारी की दुश्मन होती है." इस सन्दर्भ में ग़ौर करने लायक बात यह है कि कोई भी सीधी-सादी और कमज़ोर स्त्री दूसरी स्त्री पर अत्याचार नहीं करती. ऐसा करने वाली स्त्रियाँ पितृसत्तात्मक विचारधारा से प्रभावित होती हैं, वे ख़ुद को श्रेष्ठ समझती हैं और दूसरी औरतों को नीचा दिखाने की कोशिश करती हैं.
 हमारे समाज को ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक समाज कहा जाता है क्योंकि यहाँ जाति-व्यवस्था समाज के ढाँचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो कि भारतीय समाज को एक पद-सोपानीय स्वरूप प्रदान करता है. इस क्रम में सवर्ण पुरुष सबसे ऊपर के पायदान पर स्थित होता है और दलित स्त्री सबसे निचले क्रम पर. पितृसत्तात्मक व्यवस्था की यह महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह समाज के प्रत्येक सदस्य को एक समान न मानकर ऊँचा या नीचा स्थान प्रदान करती है.
इस प्रकार पितृसत्तात्मक व्यवस्था लोकतान्त्रिक मूल्यों के सर्वथा विपरीत है, जिसमें जाति, लिंग, वर्ण, वर्ग, धर्म आदि के भेद से ऊपर "एक व्यक्ति, एक मत" के सिद्धांत को अपनाकर मानवीय गरिमा को सर्वोपरि माना गया है. पितृसत्ता को पहचानकर उसका गहराई से विश्लेषण करना तथा उसका सही स्वरूप सामने लाना नारीवादी आन्दोलन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है.

अजब देश, गजब लोग

Posted: Monday, January 25, 2010 by आराधना मुक्ति in लेबल: , ,
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अपना देश भी अजीब है. अजब-गजब लोग हैं यहाँ, जो अजीब सी हरकतें करते रहते हैं और उससे भी अजीब लोग ऐसी हरकतों को देखकर चुप बैठे रहते हैं. अब राज ठाकरे को ही लीजिये. एक ओर देश गणतंत्र की साठवीं सालगिरह मना रहा है दूसरी ओर मनसे के कार्यकर्ता जगह-जगह मराठी सीखने की धमकी से भरे पोस्टर लगा रहे हैं. खैर, इसे गणतंत्र की विडम्बना नहीं कहेंगे क्योंकि गणतंत्र का तो मतलब ही लोगों द्वारा चुने गये प्रमुख वाला तंत्र है, यानि यहाँ लोगों की चलती है. लोग जो चाहें करें, उन्हें सब करने की आज़ादी है. अब आम आदमी के पास तो न इतनी शक्ति है और न ही समय कि वह इस तरह की हरकतें करे, तो कुछ हट्टे-कट्टे, गुंडा टाइप लोग इन राजनीतिज्ञों के इशारे पर ये सब नौटंकी करते हैं. अमीर लोग तो इनके हाथ आते नहीं, तो ये बिचारे ग़रीब टैक्सी वालों, ठेले वालों, दिहाड़ी मजदूरों पर जोर-आजमाइश करते हैं. तो अब मुम्बई में मराठी सीखने के लिये इन्हीं गरीब लोगों को पकड़ा जा रहा है. इन्हें चालीस दिन का समय दिया गया है, मराठी सीखने के लिये. इसके लिये इन्हें मराठी वर्णमाला की पुस्तक दी गयी है. यदि निश्चित समयावधि में ये गरीब मराठी नहीं सीख पायेंगे तो इन्हें वापस इनके प्रदेश यानि यू पी या बिहार भेज दिया जायेगा. अब मनसे वालों को कौन समझाये कि बेचारे गरीब अपनी बोली-भाषा तो ठीक से लिख नहीं पाते, मराठी क्या सीखेंगे? कल गणतंत्र दिवस है. इन्हें कौन बतायेगा?

नर्मदा बाँध :दूसरा पहलू

Posted: Wednesday, January 7, 2009 by आराधना मुक्ति in लेबल: , ,
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नर्मदा बाँध की बात चलने पर कई बातें मन में उठती हैं ? क्या बड़े बाँधों को बनाने की कीमत किसी न किसी को चुकाना ज़रूरी है? क्या हम विकास का कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाल सकते, जिससे सभी को बराबर का लाभ मिले, जिससे कोई भी उजड़े नहीं और न ही उन्हें पुनर्वास की आवश्यकता पड़े. मेरे विचार से देश के नौजवानों, बुद्धिजीवियों और नीति -निर्माताओं को इस विषय पर सार्वजनिक मंचों पर वाद-विवाद और बहसें करनी चाहिए. सतत विकास की सिर्फ़ बात न हो, बल्कि उसे अमल में भी लाया जाए .

गाँवो की छवियाँ

Posted: Sunday, December 28, 2008 by आराधना मुक्ति in लेबल: , ,
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हमारे मन में गाँवो की छवि दो रूपों में अधिक दिखाई देती है .हम या तो इसे एक रूमानियत से भरी जगह के रूप में देखते हैं या फिर गन्दगी से भरे ऐसे स्थान के रूप में जहाँ गँवार लोग रहते हैं.हिन्दी फिल्मों ने भी इन्हीं दो रूपों को अधिक दिखाया है .यह बात समझ के परे है कि हम भारतीय गावों को उनके स्वाभाविक रूप में समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं.जब तक देश का आम आदमी इस बात को नहीं समझेगा,तब तक हमारे गाँव अविकसित रहेंगे .