अजब देश, गजब लोग

Posted: Monday, January 25, 2010 by आराधना मुक्ति in लेबल: , ,
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अपना देश भी अजीब है. अजब-गजब लोग हैं यहाँ, जो अजीब सी हरकतें करते रहते हैं और उससे भी अजीब लोग ऐसी हरकतों को देखकर चुप बैठे रहते हैं. अब राज ठाकरे को ही लीजिये. एक ओर देश गणतंत्र की साठवीं सालगिरह मना रहा है दूसरी ओर मनसे के कार्यकर्ता जगह-जगह मराठी सीखने की धमकी से भरे पोस्टर लगा रहे हैं. खैर, इसे गणतंत्र की विडम्बना नहीं कहेंगे क्योंकि गणतंत्र का तो मतलब ही लोगों द्वारा चुने गये प्रमुख वाला तंत्र है, यानि यहाँ लोगों की चलती है. लोग जो चाहें करें, उन्हें सब करने की आज़ादी है. अब आम आदमी के पास तो न इतनी शक्ति है और न ही समय कि वह इस तरह की हरकतें करे, तो कुछ हट्टे-कट्टे, गुंडा टाइप लोग इन राजनीतिज्ञों के इशारे पर ये सब नौटंकी करते हैं. अमीर लोग तो इनके हाथ आते नहीं, तो ये बिचारे ग़रीब टैक्सी वालों, ठेले वालों, दिहाड़ी मजदूरों पर जोर-आजमाइश करते हैं. तो अब मुम्बई में मराठी सीखने के लिये इन्हीं गरीब लोगों को पकड़ा जा रहा है. इन्हें चालीस दिन का समय दिया गया है, मराठी सीखने के लिये. इसके लिये इन्हें मराठी वर्णमाला की पुस्तक दी गयी है. यदि निश्चित समयावधि में ये गरीब मराठी नहीं सीख पायेंगे तो इन्हें वापस इनके प्रदेश यानि यू पी या बिहार भेज दिया जायेगा. अब मनसे वालों को कौन समझाये कि बेचारे गरीब अपनी बोली-भाषा तो ठीक से लिख नहीं पाते, मराठी क्या सीखेंगे? कल गणतंत्र दिवस है. इन्हें कौन बतायेगा?

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